उत्तराखंड में मिले प्रमुख लेख

उत्तराखंड राज्य के विभिन्न स्थलों से कई प्रकार (शिलालेख, मंदिरलेख, गुहाभित्तिलेख, ईट लेख, मूर्तिपीठिकालेख, त्रिशूललेख, ताम्रपत्र लेख, एवं मुद्रा लेख आदि) के ऐतिहासिक लेख मिले हैं, जो अधोलिखित है – कालसी, लाखामण्डल, सिरोली, मंडल एवं माणा आदि स्थानों से शिलालेख मिले है। अशोक ने एक अभिलेख अपने राज्य की उत्तरी सीमा पर ई. पू. 257 … Read more

उत्तराखंड में पंचायती राज प्रणाली

उत्तराखंड राज्य में पंचायती राज्य व्यवस्था सर्वप्रथम 15 अगस्त 1947 को (संयुक्त प्रान्त पंचायतीराज अधि. 1947 के तहत ) लागू किया गया। 1961 से इस व्यवस्था को त्रिस्तरीय (उ.प्र. क्षेत्र समिति एवं जिला परिषद अधि. 1961 के तहत ) स्वरूप में लागू किया गया। 22 अप्रैल 1994 को इसे सांवैधानिक निकाय के रूप में (73वें संविधान संशोधन के अनुक्रम में उ.प्र. पंचायत विधि (संशोधन) विधेयक, 1994 के तहत) लागू किया गया।


राज्य के गठन के बाद 2002-03 में प्रथम निर्वाचित सरकार ने पूर्व व्यवस्था को थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ यथावत बनाएं रखने का निर्णय लिया।

राज्य सरकार ने पंचायतीराज संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण एवं विकास कार्यों के प्रभावी अनुश्रवण हेतु पंचायतीराज निदेशालय एवं जिला पंचायत अनुश्रवण प्रकोष्ठ का गठन की है।

मार्च, 2008 में पारित पंचायत (संशोधन) अधिनियम के अनुसार पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण 33% से बढ़ाकर 50% कर दिया गया।

राज्य में पंचायतों की त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू है, 

जिला पंचायत


यह पंचायती राज व्यवस्था का सबसे शीर्ष निकाय है। यह एक निगमित निकाय है। इसके सदस्यों का चुनाव जिले की 18 या अधिक आयु वर्ष की जनता द्वारा किया जाता है।

जिले के सभी प्रमुख, लोकसभा सदस्य, राज्य सभा सदस्य, राज्य विधानसभा सदस्य जिला पंचायत के पदेन सदस्य होते हैं, ये जिला पंचायत की कार्यवाहियों में भाग ले सकते व मत दे सकते हैं। केवल अविश्वास प्रस्ताव के समय मत नहीं दे सकते हैं।

इसका सचिव जिले का मुख्य विकास अधिकारी / पंचायती राज अधिकारी होता है।

जिला पंचायत अपने सदस्यों में से 6 प्रकार की समितियां से बनाती हैं जो इस प्रकार हैं- नियोजन एवं विकास समिति, शिक्षा समिति, स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति, प्रशासनिक समिति, जल प्रबंधन एवं जैव विविधता प्रबंधन समिति तथा निर्माण कार्य समिति। इसके अलावा एक-दो उपसमितियां भी होती हैं।

त्रिस्तरीय व्यवस्था में इस शीर्ष निकाय को परिवीक्षणात्मक समन्वयकारी कार्य करने होते हैं।

क्षेत्र पंचायत


त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में क्षेत्र पंचायत मध्य स्तरीय निगमित निकाय है। इसके अध्यक्ष को प्रमुख तथा उपाध्यक्ष को उप प्रमुख कहा जाता है। इसके अलावा एक कनिष्ठ उप प्रमुख भी होता हैं।

इस पंचायत का सचिव बीडीओ होता है।

क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत एवं ग्राम पंचायत के मध्य कड़ी के रूप में कार्य करती है।

ग्राम पंचायत


त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था के सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होती है। ग्राम पंचायत के गठन हेतु पर्वतीय क्षेत्रों में कम से कम 500 व मैदानी क्षेत्रों में कम से कम 1000 व अधिकतम 10 हजार की आबादी होनी चाहिए। किसी भी ग्राम पंचायत में सदस्यों की संख्या 5 से कम व 15 से अधिक नहीं हो सकती है। ग्राम पंचायत सदस्यों एवं पंचायत अध्यक्ष (प्रधान) का चुनाव ग्राम सभा के 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के सदस्यों द्वारा की जाती है। ग्राम सभा द्वारा एक उप-प्रधान भी चुना जाता है। पंचायत सदस्य, प्रधान या उप प्रधान चुने जाने हेतु आयु कम से कम 21 वर्ष होनी चाहिए। 

एक अथवा अधिक गांवों को मिलाकर गठित ग्राम पंचायत के – तहत पंजीकृत मतदाताओं को मिलाकर जो सभा बनती है, उसे ग्राम सभा कहते हैं। एक ग्राम सभा की एक ही ग्राम पंचायत होती है।

ग्राम सभा की प्रत्येक वर्ष दो आम बैठक होती है, जिसकी अध्यक्षता ग्राम प्रधान करता हैं ।

इस स्तर पर भी पूर्वोक्त 6 समितियां बनाई जाती हैं। लेकिन न शिक्षा, स्वास्थ एवं कल्याण समितियों की सभापति महिला ही होती  हैं ।

न्याय पंचायते 500 रु. तक के मूल्य के मामलों की सुनवाई कर सकती हैं। इन्हें फौजदारी के छोटे मामलों में भी भारतीय दण्ड । संहिता के अन्तर्गत दण्ड देने का अधिकार है। ये 100 रु. तक का जुर्माना कर सकती हैं, लेकिन जेल नहीं।

ग्राम पंचायतों के सब अभिलेख ग्राम प्रधान के पास होते हैं तथा सचिव की नियुक्ति ग्राम पंचायत द्वारा की जाती है।

2002-03 में प्रथम चरण में राज्य सरकार ने 29 विषयों में से केवल 14 विषयों से सम्बन्धित कार्यकलाप, दायित्व, प्रशासनिक इकाई, कर्मी और इनसे सम्बन्धित वित्तीय संसाधन ग्राम पंचायतों को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया था।

नगर निकाय प्रणाली

राज्य में नगरीय स्वायत्त शासन प्रणाली की शुरुआत 1916 में (संयुक्त प्रान्त टाउन एरिया अधि. 1916 और संयुक्त प्रान्त टाउन एरिया अधि. 1916 के तहत ) हुई ।

1993 में 74वें संविधान संशोधन द्वारा इन निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। 1994 में इन निकायों के लिए नया अधिनियम पास किया गया। राज्य गठन के बाद नगर स्वायत्त शासन थोड़े- बहुत संशोधनों के साथ पूर्ववत कानून के अनुसार चल रहा है।

प्रदेश में त्रिस्तरीय नगर स्वायत्त शासन की व्यवस्था है, जो क्रमश: इसप्रकार है

नगरनिगम


संशोधित नियमों के अनुसार राज्य में निगम परिषद का गठन उन नगरों में की जाती है, जिनकी जनसंख्या मैदान में 1 लाख व पहाड़ में 90 हजार या अधिक होती हैं।

नगरनिगमों की रचना एक नगर प्रमुख (मेयर), डिप्टी मेयर और सभासदों/ पार्षदों से होती है। नगर प्रमुख और सभासदों का चुनाव 5 वर्ष के लिए प्रत्यक्ष रीति से होता है। जबकि डिप्टी मेयर का चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से होता है।

राज्य के देहरादून, हरिद्वार, हलद्वानी, काशीपुर, रूद्रपुर, रूढ़की, ऋषिकेश व कोटद्वार आदि 8 नगरों में नगर निगम हैं।

नगरपालिका परिषद


जिन नगरों की जनसंख्या 50 हजार से मैदान में 1 लाख तक व पहाड़ पर 90 हजार तक होती है, वहाँ नगरपालिका परिषदों की रचना की जाती है।

नगरपालिका परिषद की रचना पालिका अध्यक्ष व सभासदों से होती है, जिनका प्रत्येक 5 वें वर्ष प्रत्यक्ष रीति से चुनाव होता है।

राज्य में कुल 41 नगर पालिका परिषदें हैं।

नगर पंचायत


जिन नगरों/कस्बों की जनसंख्या 5 हजार से 50 हजार तक होती हैं, वहाँ नगर पंचायतों का गठन किया जाता है।

नगरपंचायत की रचना नगर पंचायत अध्यक्ष व सभासदों से होती है, जिनका प्रत्येक 5वें वर्ष प्रत्यक्ष रीति से चुनाव होता है।

राज्य में कुल 43 नगर पंचायतें हैं। जिसमें से 3 नगर पंचायतों (बद्रीनाथ, केदारनाथ तथा गंगोत्री) में चुनाव नहीं होते, बल्कि मनोनीत पंचायते हैं।

Read more

उत्तराखंड राज्य के पारंपरिक परिधान

उत्तराखण्ड में मूलतः दो प्रकार के पारंपरिक परिधान पाए जाते हैं, एक कुमाऊनी परिधान और दूसरे गढ़वाली परिधान क्योंकि उत्तराखंड राज्य मूलतः दो भागों में बटा हुआ है – कुमाऊँ और गढ़वाल ।  उत्तराखंड की लोक संस्कृति कुमाऊनी पुरुषों के परिधान :-   धोती, पैजामा, सुराव, कोट, कुर्त्ता, भोटू, कमीज मिरजै, टांक (साफा) टोपी आदि। … Read more

उत्तराखंड के प्रमुख वैज्ञानिक

पं. नैनसिंह रावत इनका जन्म 1830 में मिलम (मुनिस्यारी, पिथौरागढ़) में हुआ था। अध्यापक की नौकरी के कारण ये पंडित के नाम से लोकप्रिय थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के लिए एक व्यापारी वेश में 1866 में नेपाल सीमा से ल्हासा (तिब्बत) तक का कठिन सर्वेक्षण किया। इस यात्रा में उन्होंने सेक्सटेंट (कोण नापने वाला यंत्र) … Read more

उत्तराखंड की प्रमुख महिलाएं


जियारानी

14वीं शताब्दी में खैरागढ़ के कत्यूरी सम्राट प्रीतम देव थे जिन्हें ‘जागर’ लोकगीतों में पृथ्वीपाल, प्रीतमशाही, पिथौराशाही तथा राजा पिथिर आदि अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। जियारानी इसी प्रीतम देव की छोटी रानी थी, जो मालवा नरेश की राजकुमारी थी। जियारानी का दूसरा नाम पिंगला या प्याला भी मिलता है।

इन्हें कुमाऊँ में न्याय की देवी माना जाता है। कुमाऊँ की लक्ष्मीबाई कही जाने वाली इस रानी ने कुमाऊं पर रोहिलों और तुर्कों के आक्रमण के दौरान रानीबाग युद्ध में उनका डटकर मुकाबला किया था, लेकिन अंत में वह बंदी बना ली गईं थीं।

कर्णावती


जुलाई 1531 में अल्मोड़ा युद्ध में महाराज महिपति का देहावसान हो जाने के पश्चात उनकी पत्नी कर्णावती ने अपने पुत्र युवराज पृथ्वीपति शाह के वयस्क होने तक गढ़वाल राज्य का शासन संभाली। इन्होंने मुसलमान सेनानायक दोस्त बेग मुगल के परामर्श पर अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने वालों की नाक कटवा देने की प्रथा शुरू की। आगे चलकर ये नाक काटने वाली रानी के नाम से विख्यात हुई। उन्होंने शाहजहाँ के शासनकाल में नजावत खाँ के नेतृत्व में भेजी गई मुगल सेना को गढ़वाल मोहल चट्टी में बुरी तरह पराजित किया था। 

तीलू रौतेली


17वीं शताब्दी में गुराड़ गाँव पौढ़ी में जन्म लेने वाली अपूर्व शौर्य, संकल्प और साहस की धनी वीरांगना रौतेली को गढ़वाल के इतिहास में ‘झांसी की रानी’ के नाम से जाना जात है। 15 से 22 वर्ष की आयु के मध्य 7 युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली सम्भवतः विश्व की एकमात्र वीरांगना हैं। उसने कत्यूरियों को परास्त कर अपने पिता (धोकदार भूपसिंह गोर्ला) व पति का बदला लिया। उसकी घोड़ी का नाम ‘बिन्दुल’ था।

सरला बहन


इनका जन्म 1901 में इंग्लैण्ड में हुआ था और इनका मूल नाम ‘मिस कैथरिन हाइलामन था। ये गांधी जी से काफी प्रभावित थी और गांधी जी ने ही इनका यह नाम दिया था। ये जब से इंग्लैण्ड से आईं फिर लौट कर नहीं गई। इनका ज्यादा समय उत्तराखण्ड में बीता। 1941 में कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम पहुँची और गांव-गांव जाकर स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए लोगों को तैयार किया। इन्होंने महिलाओं को एकजुट करने का भी प्रयास किया।

विशनी देवीशाह


इनका जन्म 1902 में बागेश्वर में हुआ था। ये स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल जाने वाली उत्तराखण्ड की प्रथम महिला थी। 1930 में इनके नेतृत्व में महिलाओं ने अल्मोड़ा नगरपालिका पर, 1935 में अल्मोड़ा के मोतिधारा में तथा 1940 में नन्दादेवी परिसर में झण्डा फहराया।

कुन्ती वर्मा


इनका जन्म 1906 में अल्मोड़ा नगर में हुआ था। इन्होंने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी की। सन 1932 में इन्होंने विदेशी वस्त्रों के खिलाफ धरना दिया। कई बार जेल गईं।

विद्यावती डोभाल


इनका जन्म 1902 में गढ़वाल में हुआ था। ये गढ़वाल की पहली महिला लेखिका, कवियित्री, समाजसेविका और विमान परिचारिका हैं। 1929 में इनकी पहली रचना ‘अमृत की बूंदें’ गढ़वाली प्रेस देहरादून से प्रकाशित हुई। पगली का प्रलाप, श्रीमती मंगला देवी जुयाल की जीवनी, खण्डूड़ी कुल की विभूतियां और एवरेस्ट के देवता इनकी अन्य रचनाएं हैं।

कमलेन्दुमती शाह


टिहरी रियासत के महाराजा नरेन्द्र शाह की महारानी कमलेन्दुमती 1952 में टिहरी से प्रथम लोकसभा के लिए चुनी गई। अंग्रेजी, फ्रेंच और हिन्दी के अलावा वे दर्शन और संगीत में भी निपुण थी। वे ऑल इण्डिया वूमेन एसोशिएशन की अजीवन सदस्य रहीं। इन्होंने ‘जीवन ज्योति’ (कविता संग्रह) और ‘माई इम्प्रेशन ऑफ अमेरिका’ पुस्तक लिखी। जनसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1958 में ‘पदमभूषण’ सम्मान से सम्मानित की गयीं। 1999 में इनका देहान्त हो गया।

श्रीमती चन्द्रावती लखनपाल


इनका जन्म 1904 में हुआ था। ये एक सुप्रसिद्ध लेखिका, स्वतंत्रता सेनानी, जनप्रतिनिधि एवं शिक्षाविद रही। 1938 से 1952 के बीच ये महादेवी कन्या इन्टर कालेज और कन्या गुरुकुल, देहरादून की प्रिन्सीपल रहीं। 1952 में राज्यसभा की मनोनीत सदस्य बनी। ‘मदर इण्डिया’, शिक्षा मनोविज्ञान, स्त्रियों की शिक्षा जैसी श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों के सृजन के लिए इन्हें ‘सेक्सरिया पुरस्कार’ और ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित किया गया।

श्रीमती लक्ष्मीदेवी टम्टा


इनका जन्म 1911 में अल्मोड़ा में हुआ था। ये स्नातक डिग्री लेने वाली उत्तराखण्ड की पहली दलित महिला हैं। 1935 में इन्होंने प्रदेश के सबसे पुराने साप्ताहिक समाचार पत्रों में से एक अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘समता’ (साप्ताहिक) के सम्पादन का दायित्व सम्भाला और इस के माध्यम से शिल्पकार वर्ग की दयनीय स्थिति की ओर समाज और सरकार का ध्यान आकृष्ट किया।

डॉ. दमयन्ती कपूर


इनका जन्म 1917 में हुआ था। यह एक साहित्यकार, इतिहासकार और अनुभवी शिक्षाविद रही हैं। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने इन्हें 27 अक्टूबर, 1999 को डि.लिट. की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया। इससे पूर्व केवल इन्दिरा गांधी का यह सम्मान 1974 में दिया गया था। देहरादून नागरिक परिषद ने इन्हें ‘दून रत्न’ और दूसरी स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी इन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया है। 

टिंचरी माई


इनका जन्म ग्राम मंज्यूर, तहसील थलीसैंण में हुआ था। इनका वास्तविक नाम दीपा देवी था। मात्र 17 वर्ष की आयु में ही विधवा हो गईं। बाद में इन्होंने मन्दिर में जाकर संन्यास धारण कर अपना नाम इच्छागिरि रख लिया। उन्होंने पाखण्डी साधुओं के खिलाफ मोर्चा खोला। गढ़वाल मे शराब के नाम पर चल रही टिंचरी का विरोध किया। अकेले ही शराब की दुकानों में आग लगा दी। इसलिए उन्हें टिंचरी माई के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने गांव में स्कूल खोले। पानी के लिए आन्दोलन किया। वह जन समस्याओं के समाधान के लिए सरकारी अधिकारियों से अकेले भिड़ जाती थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन सामाजिक कार्यों में लगा दिया।

गौरा देवी


चिपको आन्दोलन की प्रथम सूत्रधार महिला श्रीमती गौरा का जन्म 1925 में लाता (टिहरी) में हुआ था। 12 वर्ष की आयु में विवाह हो गया और शादी के लगभग 8 वर्ष बाद इनके पति मेहरवानसिंह की मृत्यु हो गई। 26 मार्च, 1974 को गांव के पुरुष बाहर गए थे और ठेकेदार के आदमी वनों का कटान करने आ गए। तो गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। जिस कारणों से वन काटने वाले मजदूरों को हारकर वापस लौटना पड़ा। बाद में वृक्षों की रक्षा के लिए इस प्रकार का आन्दोलन पूरे विश्व में फैल गया। नवम्बर, 1986 में उन्हें प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘चिपको वूमन’ के नाम से ख्याति प्राप्त गौरा प देवी का निधन 4 जुलाई, 1991 को हुआ।

गौरा पंत ‘शिवानी’


इनका जन्म 1923 में राजकोट (गुजरात) में एक कुमाउंनी परिवार में हुआ था। इनकी प्राथमिक शिक्षा अल्मोड़ा में तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई। इन्होंने बाल्यवस्था से ही साहित्य सृजन शुरू कर दिया था ।

उन्होंने कुल 30 उपन्यास, 13 कहानी संग्रह और 8 संस्मरण लिखे हैं। विषकन्या, कैंजा, चौदह फेरे, भैरवी, करिए छिमा एवं गहरी नींद उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं। उन्हें भारतेन्दु हरिशचन्द सम्मान (1979), पदमश्री (1981), महादेवी वर्मा सम्मान (1994), सुब्रमण्यम सम्मान (1995), हिन्दी सेवा निधि राष्ट्रीय पुरस्कार (1997) सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं। मार्च 2003 को लखनऊ में इनका निधन हो गया ।

प्रो. सुशीला डोभाल


इनका जन्म 1928 में हुआ था। ये उत्तराखण्ड की प्रथम महिला कुलपति होने के साथ ही अध्येता, शिक्षाविद और कुशल प्रशासक भी थीं। 1958 में महादेवी कन्या डिग्री कॉलेज देहरादून की पहली प्रधानाचार्य नियुक्त हुईं। 1977 में गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति नियुक्ति हुई। इस पद पर पहली बार 1978 तक और दूसरी बार 6 माह के लिए 1984-85 में रहीं। 

सुश्री राधा भट्ट


इनका जन्म 1934 में धुरका, अल्मोड़ा में हुआ था। ये प्रख्यात समाजसेविका, पर्यावरण कार्यकत्री, गांधीवादी विचारक और लेखिका थीं। हाईस्कूल की शिक्षा के पश्चात मात्र 18 वर्ष की आयु में ही गांधी जी की अंग्रेज शिष्या सरला बहिन के सम्पर्क में आयीं और लक्ष्मी आश्रम कोसानी से जुड़ गयीं। 1957 से  61 तक भू-दान यात्रा में सक्रिय रहीं। अवैध खनन के विरूद्ध इन्होंने खीराकोट पर्यावरण आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1961-63 के दौरान इन्होंने अपने ही गांव में गाँधीवादी आदर्शों और कार्यप्रणाली पर आधारित समाज-सेवा के प्रचार किए। 1992 में इन्हें ‘जमुनालाल बजाज पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।

मृणाल पाण्डेय


ये प्रसिद्ध लेखिका गौरापंत शिवानी की पुत्री हैं। इनका जन्म फरवरी 1946 में टीकमगढ़ में हुआ था। बहुआयामी प्रतिभा की धनी मृणाल पाण्डेय लेखिका, सम्पादक, पत्रकार, कलाविद, मूर्ति शिल्पी, आगरा ग्वालियर घरानों के  हिन्दुस्तानी संगीत की संगीतज्ञ और दूरदर्शन की जानी-मानी हस्ताक्षर रही हैं। वर्तमान में ये दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ की संपादक है। इससे पूर्व ‘वामा’ एवं ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पात्रिका की संपादक रह चुकी हैं। इनकी कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं- दरम्यान, शब्दबेधी, एक नीच टूजडी (कहानी संग्रह), विरूद्धा, पटरंगपुर  पुराण (उपन्यास), मौजूदा हालत को देखते हुए, जो राम रचि राखा, काजर की कोठी, आदमी जो मछुआरा नहीं था, चोर निकल भागा (नाटक) आदि। ‘इण्डियन थियेटर टुडे’ इनकी अंग्रेजी में लिखी महत्वपूर्ण कृति है।

दीक्षा बिष्ट


राष्ट्रीय स्तर की वैज्ञानिक पत्रिका (विज्ञान प्रगति ) का लगातार 12-13 वर्षों तक सम्पादन करने वाली उत्तराखण्ड की पहली महिला हैं। इन्हें हिन्दी में वैज्ञानिक लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए मानव सेवा परिषद, नई दिल्ली एवं केन्द्रीय औषधीय एवं सुगन्ध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा सम्मानित किया गया है। विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु ‘विज्ञान’ परिषद‘ प्रयाग द्वारा ‘विज्ञान श्री’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया हैं। दूरदर्शन के धारावाहिक ‘पल्लव’ का भी इन्होंने लेखन किया था।

प्रभा किरण


मार्च 1955 में गढ़वाल में जन्मी प्रभा किरण एक सम्पादक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्त्री, छोटे पर्दे की कथा लेखिका, पुस्तक लेखिका के साथ-साथ डाकुमेन्ट्री फिल्मों की निर्माता भी रही हैं। सोशियल वेलफेयर बोर्ड, उ.प्र. और बाल न्यायालय गढ़वाल मण्डल की जूरी की सदस्य रही। अनाश्रित महिला सेवी संस्था की संस्थापिका तथा कल्याण विस्तार परियोजना, गढ़वाल की सामाजिक कार्यकर्त्री ।

प्रथम गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ और ‘हिमालय गर्ल’ की प्रोडक्शन कन्ट्रोलर रहने के साथ ही कई टेली फिल्मों की निर्माता भी रही हैं। 1977 में टास्क फोर्स कमेटी, टिहरी गढ़वाल की सदस्य रहीं। ‘आत्म साक्षात्कार‘ और ‘अभिव्यक्ति इनके द्वारा लिखित पुस्तकें हैं।

कैप्टेन भावना गुरुनानी


इनका जन्म जनवरी 1972 में अल्मोड़ा के सूरीगांव में हुआ था। ये उत्तराखण्ड की पहली सैन्याधिकारी हैं, जिन्हें ए.एम.सी. के अतिरिक्त सेना की दूसरी शाखा (ए.ई.सी.) में नियुक्ति पाने का गौरव प्राप्त हुआ। इन्होंने सेना में 1994 में प्रवेश किया था।

मे.जन. कु. माया टम्टा


अल्मोड़ा की रहने वाली कु. माया टम्टा भारत की ही नहीं, विश्व की पहली महिला मेजर जनरल हैं। इनके पिता भी सेना में ब्रिगेडियर थे अतः इनकी शिक्ष-दीक्षा पुणे में हुई थी। कु. माया टम्टा ए.एम.सी. की मिलेट्री नर्सिंग सर्विस से रिटायर हुईं।

मधुमिता बिष्ट


मधुमिता बिष्ट एक बैडमिण्टन खिलाड़ी हैं, जिन्हें राष्ट्रीय बैडमिन्टन प्रतियोगिता के एकल वर्ग में 1986 से 1990 तक निरन्तर खिताब जीतने का गौरव प्राप्त हुआ। इन्होंने ओलम्पिक में भी भाग लिया था। 1982 में इन्हें अर्जुन पुरस्कार तथा 2006 में पदमश्री से सम्मानित किया गया।

बालीदेवी राणा


1987 में इंदिरा गांधी वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित बाली देवी विगत 24-25 वर्षों से महिला मंगल दल की अध्यक्षा रहते हुए चिपको आन्देलन की प्रमुख भागीदार व पर्यावरण शिक्षा एवं बालवाड़ियों के लिए निरन्तर क्रियाशील रही हैं। अक्टूबर, 2004 में इन्होंने नैरोबी में सम्पन्न ग्लोबल असेम्बली ऑफ वूमन ऑन इन्वायरनमेन्ट विषय पर व्याख्यान दिया था।

हिमानी शिवपुरी


फिल्म कलाकार हिमानी शिवपुरी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं। ‘हम आपके हैं कौन ?’ इनकी सर्वाधिक चर्चित और हिट फिल्म है। टी.वी. सीरियल ‘शान्ति’ और कई दूसरे सीरियलों में इन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है।

सुश्री मीनू


इन्होंने जूडो के राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई पदक प्राप्त किया है। मार्च 1997 में इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय जूडो के लिए पहली भारतीय महिला रेफरी चुना गया था। शालिनी शाह – नैनीताल निवासी शालिनी शाह को 48वें राष्ट्रीय फिल्म समारोह में 35 मिमी रंगीन वृत्तचित्र की श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। उन्हें वृत्तचित्र निर्माण में राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ निर्देशिका का सम्मान राष्ट्रीय पुरस्कार के रूप में मिला है।

हंसा मनराल


द्रौणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाली उत्तराखण्ड की प्रथम महिला हैं।

ज्योतिराव पाण्डे


ये उत्तराखण्ड की प्रथम महिला हैं, जो कि आई.ए.एस. की परीक्षा पास की थीं।

सुश्री ऋतु उपाध्याय


अल्मोड़ा जनपद के सौनी (ताड़ीखेत) मूल की अमेरिका में रहने वाली ऋतु उपाध्याय को 2000 में मिस वर्ल्ड वाइड के खिताब से सम्मानित किया गया था।

निहारिका सिंह


मूल रूप से उत्तराखण्ड की निवासी निहारिका सिंह 27 मार्च 2005 को ‘मिस इण्डिया अर्थ 2005’ चुनी गईं थीं।


राज्य निर्माण आन्दोलन से जुड़ी महिलाएं


बेलमती चौहान, हंसा धनाई, कमला पन्त, सुशीला बलूनी, कौशल्या डबराल, सुभाषिनी बर्त्वाल आदि ।

Read more

प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व राजनीतिज्ञ

कालू महरा  उत्तराखण्ड के इस प्रथम स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 1831 में वर्तमान चम्पावत जिले के लोहाघाट के पास स्थित विसुड़ गांव में हुआ था। 1857 के क्रांति के दौरान इन्होंने कुमाऊँ क्षेत्र में गुप्त संगठन (क्रांतिवीर) बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन चलाया। उस समय कुमाऊँ के कमिश्नर हेनरी रैमजे थे। इनकी मृत्यु 1906 में … Read more

उत्तराखंड के प्रमुख सैन्यकर्मी

माधो सिंह भण्डारी ये 17वीं सदी में गढ़वाल के राजा महीपति शाह के प्रमुख सेनापति रहे। उनकी बहादुरी, त्याग एवं उदारता के किस्से आज भी गढ़वाल में प्रसिद्ध हैं। इतिहास में वे ‘गर्वभंजक’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होनें कई युद्धों में विजय पायी, जिसमें 1635 में तिब्बत की सेना से हुआ युद्ध प्रमुख है। … Read more

उत्तराखंड का परिचय

उत्तराखंड भारत का एक उत्तरीय राज्य है। उत्तराखंड भारत का 26वां और हिमालयी क्षेत्र का 10वां राज्य है। उत्तराखंड राज्य को दो हिस्से गढ़वाल और कुमाऊं में बांटा गया है। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता हैं क्योंकि यहाँ पर हिन्दू देवी-देवताओं के कई सारे मंदिर स्थित हैं। 

भारत की संसद द्वारा 31 अक्टूबर 2019 से ‘जम्मू और कश्मीर राज्य‘ को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में ‘जम्मू और कश्मीर’ और ‘लद्दाख’ में बदलने से पहले,  उत्तराखंड भारत का 27वां और हिमालयी क्षेत्र का 11वां राज्य था।

उत्तराखंड राज्य का गठन

उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश राज्य से अलग होकर हुई। उत्तराखंड का नाम पहले उत्तराँचल था। 1 जनवरी 2007 को इसका नाम बदल कर उत्तराखंड कर दिया गया। उत्तराखंड के पूर्व में नेपाल, पश्चिम हिमाचल, उत्तर में तिब्बत और दक्षिण में उत्तर प्रदेश स्थित हैं। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून (ग्रीष्मकालीन राजधानी ‘गैरसैंण’) है जो कि क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड राज्य का सबसे बड़ा शहर है।

वैदिक पुराणों में भी उत्तराखंड का उल्लेख मिलता हैं। हिन्दू शास्त्रों में उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ को मानसखंड और गढ़वाल को केदारखंड के नाम से दर्शाया गया है। पुरातत्व सबूतों के आधार पर यह पता चला है की प्राचीन काल से ही उत्तराखंड में मानवों का वास रहा है।

उत्तराखंड राज्य की आधिकारिक भाषा

उत्तराखंड भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जिसकी आधिकारिक भाषा संस्कृत है। उत्तराखंड राज्य में प्रमुखतः हिंदी भाषा बोली जाती है ये भी आधिकारिक भाषा है। साथ ही कुमाऊँनी तथा गढ़वाली का भी प्रयोग किया जाता है अन्य कई बोलियों का प्रयोग भी होता है। 

उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना

यह भारत का 26वाँ राज्य है, जो 28º43’ से 31º27’ उत्तरी अक्षांशों तथा 77º34’ से 81º02’ पूर्वी देशांतर तक है। इसका सम्पूर्ण क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 1.69% है और क्षेत्रफल की दृष्टी से भारत का 18वाँ राज्य है।

उत्तराखंड के 86 प्रतिशत भाग पर पहाड़ एवं 65 प्रतिशत भाग पर जंगल पाए जाते हैं। स्वतंत्रता के समय भारत में केवल एक ही हिमालयी राज्य ‘असम’ था। उसके बाद जम्मू और कश्मीर दूसरा तथा तीसरा राज्य नागालैण्ड बना ऐसे ही उत्तराखंड 10वाँ हिमालयी राज्य बना।

प्रशासनिक दृष्टी से उत्तराखंड में 13 जनपद हैं। उत्तराखंड की कुल जनसंख्या 1,00,86,349 (जनगणना 2011 के अनुसार) है, जो कि देश की कुल जनसंख्या का 0.83% है।

उत्तराखंड में जन आंदोलनों

उत्तराखंड कई आंदोलनों की वजह से भी विख्यात है जैसे चिपको आंदोलन जो की पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए चलाया गया था। यह आंदोलन पहाड़ की महिलाओं द्वारा चलाया गया था। कुछ और आंदोलन जैसे कुली बेगार आंदोलन, डोला पालकी आंदोलन आदि भी प्रमुख आंदोलन रहे हैं। 

उत्तराखंड नाम की उत्पत्ति

उत्तराखंड राज्य का नाम संस्कृत शब्दों के मेल से बना है उत्तर और खण्ड को मिलाकर उत्तराखंड बनाया गया है। उत्तर का मतलब उत्तर दिशा से है और खंड का मतलब होता है भूमि से, जिसका पूरा मतलब हुआ उत्तर की भूमि या उत्तर दिशा की तरफ बसी भूमि।

उत्तराखंड में जनपद

उत्तराखंड राज्य में कुल 13 जनपद हैं जो निम्न हैं –

i. पिथौरागढ़, ii. अल्मोड़ा, iii. बागेश्वर, iv. चम्पावत, v. नैनीताल, vi. उत्तरकाशी, vii. उधम सिंह नगर, viii. टिहरी गढ़वाल, ix. रुद्रप्रयाग, x. पौड़ी गढ़वाल, xi. हरिद्वार, xii. देहरादून, xiii. चमोली

Read more

उत्तराखंड के प्रमुख संग्रहालय | Major Museums of Uttarakhand

देहरादून वन संग्रहालय यह राज्य का सबसे पुराना संग्रहालय है जिसकी स्थापना वन अनुसन्धान केन्द्र देहरादून में 1914 में की गई थी। इसमें अनेक वनोत्पादों के साथ ही 18000 काष्ठ नमूनों का अदभुत संग्रह है। पं गोविन्द बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा राज्य में मौर्य, शुंग, यौधेय, कुषाण व गुप्त राजवंशों के अतिरिक्त स्थानीय कुणिन्द, … Read more

उत्तराखंड के प्रमुख संस्थान | Major Institutions in Uttarakhand

उत्तराखंड में स्थित प्रमुख संस्थान (Major institutions in Uttarakhand) : उत्तराखंड के प्रमुख संस्थान, संस्थानों के स्थापना वर्ष एवं उनके स्थानों की जानकारी — लोक सेवा आयोग  प्रदेश में राज्य लोक सेवा आयोग का गठन अप्रैल 2001 में किया गया। इस आयोग के अध्यक्ष सहित कुल 4 सदस्य हैं। आयोग का मुख्यालय हरिद्वार में है। … Read more